________________ भत्तपरिणापयन्नो (3) दसणभट्ठो न हु भट्ठो होइ चरणपब्भट्ठो। दसणमगुपत्तस्स हु परिअडणं नत्थि संसारे // 65 // सगभट्ठो भट्ठो दंसणभट्ठस्स नत्थि निव्वाणं / सिझंति चरणरहिआ दंसणरहिआ न सिझंति // 66 // सुद्धे सम्मत्ते अविरओऽवि अज्जेइ तित्थयरनामं / जह आगमेसिभद्दा हरिकुलपहुसेणिआईया // 67 / / कल्लाणपरंपरयं लहंति जीवा विसुद्धसम्मत्ता / सम्मइंसणरयणं नऽग्घइ ससुरासुरे लोए // 68 // तेलुक्कस्स पहुत्तं लभ्रूणवि परिवडंति कालेणं / सम्मत्तं पुण लधु अक्खयसुक्खं लहइ मुक्खं // 69 // अरिहंतसिद्धचेइयपवयणआयरिअसव्वसाहूसुं / तिव्वं करेसु भत्तिं तिगरणसुद्धेण भावेणं / / 70 // एगावि सा समत्था जिणभत्ती दुग्गइं निवारेउं / दुलहाई लहावेऊं आसिद्धि परंपरसुहाई।।७१॥ विजावि भत्तिमंत्तरस सिद्धिमुक्याइ होइ फलया य / किं पुण निव्वुइविजा सिज्झिहिइ अभत्तिमंतस्स ? // 72 // तोस आराहणनायगाण न करिज जो नरो भात्तं / .... धणिअंपि उज्जमतो सालिं सो ऊसरे ववइ / / 73 // बीएण विणा सस्सं इच्छइ सो वासमब्भएण विणा / आराहणमिच्छंतो आराहयभत्तिमकरंतो // 4 // उत्तमकुलसंपत्ति मुहनिप्फत्तिं च कुणइ जिणभत्ती / मणियारसिट्ठिजीवस्स दद्दुरस्सेव रायगिहे // 75 / /