________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे जइ सोऽवि सब्वविरईकयाणुराओ विसुद्धमइकाओं। छिन्नसयणाणुराओ विसयविसाओ विरत्तो अ // 32 // संथारयपवजं पव्वज्जइ सोऽवि निअम निरवजं / सध्वविरइप्पहाणं सामाइअचरित्तमारुहइ // 33 // . अह सो सामाइअधरो पडिवन्न महव्वओ अ जो साहू / देसविरओ अ चरिमं पञ्चक्खामित्ति निच्छइओ // 34 // गुरुगुणगुरुणो गुरुणो पयपंकय नमिअमत्थओ भणइ / भयवं ! भत्तपरिन्नं तुम्हाणुमयं पवजामि // 35 // आराहणाइ खेम तस्सेव य अप्पणो अ गणिवसहो / दिव्वेण निमित्तेणं पडिलेहइ इहरहा दोसा // 36 // तत्तो भवचरिमं सो पञ्चक्खाइत्ति तिविहमाहारं / उक्कोसिआणि दव्वाणि तस्स सव्वाणि दंसिज्जा // 30 // पासित्तु ताई कोई तीरं पत्तरिसमेहिं किं मज्झ ? / देसं च कोइ भुच्चा संवेगगओ विचिंतेइ // 38 // . किं चत्तं नोवभुत्तं मे परिणामासुई सुई। / दिट्ठसारो सुहं झाइ चोअणेसाऽवसीअओ // 39 // उअरमलसोहणट्ठा समाहिपाणं मणुन्नमेसोऽवि / महुरं पजेअव्वो मंदं च विरेयणं खमओ // 4 // एलतयनागकेसरतमालपत्तं ससक्करं दुद्धं / पाऊण कढिअसीअलसमाहिपाणं तओ पच्छा / / 41 // महुरविरेअणमेसो कायव्वो फोफलाइदव्वेहिं / ... निव्वाविओ अ अग्गी समाहिमेसो सुहं लहइ // 42 //