________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे .. लद्धं अलद्धपुव्वं, जिणवयणसुभासिय अमयभूअं / गहिओ सुग्गइमग्गो, नाहं मरणस्स बीहेमि // 63 // धीरेण वि मरियव्यं, काउरिसेण वि अवस्स मरियव्वं / दुन्हंपि हु मरिअव्वे, वरं खु धीरत्तणे मरिउं // 64 // सीलेण वि मरिअव्वं निस्सीलेण वि अवस्स मरियव्वं / दुन्हंपि हु मरिअव्वे, वरं खु सीलत्तणे मरिउं // 65 // नाणरस देसणस य, सम्मत्तस्स. य चरित्तजुत्तस्स / जो काही उवओगं, संसारा सो विमुच्चिहिसि // 66 // चिरउसिय बंभयारी, पप्फोडेऊण सेसयं कम्मं / अणुपुव्वीइ विसुद्धो, गच्छइ सिद्धिं धुंयकिलेसो // 6 // निक्कसायरस दंतरस, सूरस्स ववसाइणो / / संसारपरिभीअस्स, पञ्चक्खाणं सुहं भवे // 68 // एयं पञ्चक्खाणं, जो काही मरणदेसकालंमि / धीरो अमूढसन्नो, सो गच्छइ उत्तम ठागं // 69 // . धीरो-जर मरणविऊ, वीरो विन्नाणनाणसंपन्नो / लोगरसुजोअगरो, दिसउ खयं सव्वदुक्खाणं // 50 // . // इइ आउरपच्चक्खाणपयन्नो संमत्तो॥