________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे . सम्मदसणरत्ता, अनियाणा सुक्कलेसमोगाढा / इह जे मरंति जीवा, तेसिं सुलहा भवे बोही // 41 / / जे पुण गुरुपडिणीया, बहुमोहा ससबला कुसीला य / असमाहिणा मरंति, ते हंति अणंतसंसारी // 42 / / जिणवयणे अणुरत्ता, गुरुवयणं जे करंति भावेण / असबल-असंकिलिट्ठा, ते हंति परित्तसंसारी // 43 // बालमरणाणि बहुसो, बहुआणि अकामगाणि मरणाणि / मरिहंति ते वराया, जे जिणवयगं न याणंति // 44 // सत्थग्गहणं विसभ- क्खगं च जलणं च जलप्पवेसो अ। अणायारभंडसेवी, जम्मणमरणाणुबंधीणि // 45 // उड्ढमहे तिरियंमि वि, मयाणि जीवेण बालमरणाणि / दसणनाणसहगओ, पंडियमरणं अणुमरिस्सं // 46 // उब्वेयणयं जाई-मरणं नरएसु वेअणाओ य / एआणि संभरंतो, पंडियमरणं मरसु इन्हि // 47 // जइ उप्पज्जइ दुक्खं, तो दट्ठव्वो सहावओ नवरं / किं किं मए न पत्तं, संसारे संसारतेणं // 48 // संसारचक्कवाले, सव्वे वि य पुग्गला मए बहुसो। आहारिआ य परिणा- मिआ य न य हं गओ तत्ति // 49 / / तणकठेहि व अग्गी, लवणजलो वा नईसहस्सेहिं / न इमो जीवो सक्को, तिप्पेउं कामभोगेहिं // 50 // आहारनिमित्तेणं, मच्छा गच्छंति सत्तमि पुढविं / / सञ्चितो आहारो, न खमो मणसा वि पत्थेउं // 51 // .