________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे जं मणवयकाएहिं, कय-कारिअ-अणुमईहिं आयरियं / धम्मविरुद्धमसुद्धं, सव्वं गरिहामि तं पावं // 54 // अह सो दुक्कडगरिहा-दलिउक्कडदुक्कडो फुड भणइ / सुकडाणुरायसमुइन्न-पुन्नपुलयंकुरकरालो // 55 // अरिहंतं अरिहंतेसु, जं च सिद्धत्तणं च सिद्धेसु / .. आयारं आयरिए, उवज्झायत्तं उवज्झाए // 56 // साहूण साहुचरिअं, देसविरइं च सावयजणाणं / अणुमन्ने सव्वेसिं, सम्सत्तं सम्मदिट्ठीणं // 55 // अहवा सव्वं चिय वीअ-रायवयणाणुसारि जं सुकडं / कालत्तए वि तिविहं, अणुमोएमो तयं सव्वं // 58 // सुहपरिणामो निच्चं, चउसरणगमाइ आयरं जीवो / कुसलपयडीउ बंधइ, बद्धाउ सुहाणुबंधाउ // 59 // मंदणुभावा बद्धा, तिव्वणुभावा उ कुणइ ता चेव / असुहाउ निरणुबंधाउ कुणइ तिव्वाउ मंदाउ // 6 // ता अयं कायव्वं, बुहेहि निच्चपि संकिलेसम्मि / होइ तिकालं सम्मं, असंकिलेसंमि सुकयफलं // 61 // चउरंगो जिणधम्मो, न कओ चउरंगसरणमवि न कयं / चउरंगभवच्छेओ, न कओ हा हारिओ जम्मो // 62 // इय जीवपमायमहारि-वीरभदंतमेयमायणं / झाओसु तिसंझ-मवंझ-कारणं निव्वुड्सुहाणं // 33 // // इह चउसरणपयन्नो संमत्तो॥