________________ श्रुतरत्नरत्नाकरे जह कागिणीइ हेउं कोडिं रयणाण हारए कोई। तह तुच्छविसयगिद्धा जीवा हारंति सिद्धिसुहं // 493 // धम्मो न कओ साउं न जेमियं नेय परिहियं सहं / आसाएँ विनडिएहिं हा दुलहो हारिओ जम्मो // 494 // . नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघसाहूणं / गिण्हंतेण अवन्नं मूढेणं नासिओ अप्पा // 495 // सोयंति ते वराया पच्छा समुवठियम्मि मरणम्मि / पावपमायवसेहिं न संचिओ जेहिं जिणधम्मो // 496 // लथुपि दुलहधम्मं सुहेसिणा इह पमाइयं जेण। सो भिन्नपोयसंजत्तिओव्व भमिही भवसमुदं // 497 // गहियं जेहिं चरित्तं जलं व तिसिएहिं गिम्हपहिएहिं / कयसोग्गइपत्थयणा ते मरणंते न सोयंति // 498 // को जाणइ पुणरुत्तं होही कइयावि धम्मसामग्गी ? / रंक व्व धणं कुणह महब्बयाण इण्हिपि पत्ताणं // 499 // अलमित्थ वित्थरेणं कुरु धम्मं जेण बंछियसुहाई। पावेसि पुराहिवनंदणो व्व धूया व नरवइणो / 500 / इय भावणाहिं सम्मं णाणी जिणवयणबद्धमइलक्खो / जलणोव्व पवणसहिओ समूलजालं दहइ कम्मं // 501 // नाणे आउत्ताणं नाणीणं नाणजोगजुत्ताणं / को निजरं तुलेजा चरणम्मि परक्कमंताणं ? // 502 // नाणेणं चिय नज्जइ करणिजं तह य वजणिज्जं च / नाणी जाणइ काउं कजमकजं च वजेउं // 503 //