________________ भवभावना (8) इच्छंतो रिद्धीओ धम्मफलाओऽवि कुणसि पावाई। कवलेसि कालकूडं मूढो चिरजीवियत्थीवि // 482 // भवभमणपरिरसंतो जिणधम्मतरुम्मि वीसमिउं च / मा जीव ! तंमिवि तुमं पमायवणहुयवहं देसु // 483 // अणवरयभवमहापहपयट्टपहि एहिं धम्मसंबलयं / जेहिं न गहियं ते पावयंति दीणत्तणं पुरओ // 484 // जिणधम्मरिद्धिरहिओ रंकोच्चिय नूण चक्कवट्टीवि / तस्सवि जेण न अन्नो सरणं नरए पडतस्स / / 485 // धम्मफलमणुहवंतोऽवि बुद्धि-जस-रूव-रिद्धिमाईयं / तंपि हु न कुणइ धम्मं अहह कहं सो न मूढप्पा ? // 486 // जेणं चिय जिणधम्मेण गमिओ रंकोवि रज्जसंपत्ति / तम्मिवि जस्स अवन्ना सो भन्नइ किं कुलीणोत्ति ? // 487 / / जिणधम्मसत्थवाहो न सहाओ जाण भवमहारन्ने / किह विसयभोलियाणं निव्वुइपुरसंगमो ताणं 1 // 488 // नियंयमणोरहपायवफलाई जइ जीव ! वंसि सुहाइं / तो तं चिय परिसिंचसु निचं सद्धम्मसलिलेहिं // 489 // जइ धम्मामयपागं मुहाएँ पावेसि साहुमूलम्मि / ता दविएण किणेउं विसयविसं जीव ! किं पियसि ? // 490 // अन्नन्नसुहसमागमचिंतासयदुत्थिओ सयं कीस ? / कुण धम्मं जण सुहं सोच्चिय चिंतेइ तुह सव्वं // 491 // संपज्जंति सुहाई जइ धम्मविवजियाणवि नराणं / तो होज तिहुयणम्मिवि करस दुहं ? करस व न सोक्खं ? // 492 / /