________________ श्रुत रत्नरत्नाकर . 112 पढम अणिच्चभावं (1) असंरणयं (2) एगपंच (3) अन्नत्तं / (४)संसार (५)मसुई चिय (६)विविहं लोगस्सहावं च (7) // 9 // . कम्मस्स आसवं (८)संवरं च (९)निज्जरण (१०)मुत्तमे यं गुणे / जिणसासणम्मि (11) बोहिं च दुल्लहं चिंतए मइमं (12) // 10 // सव्वप्पणा अणिच्चो नरलोओ ताव चिट्ठउ असारो। जीयं देहो लच्छी सुरलोयम्मी वि अणिच्चाई // 11 // नइपुलिणवालुयाए जह विरझ्य अलिय करितुरंगेहिं / घररज्जकप्पणाहि य बाला कीलंति तुट्ठमणा // 12 // तो सयमवि अन्नेण व भग्गे एयम्मि अहव एमेव / अन्नऽन्नदिसि सव्वे वयंती तह चेव संसारे // 13 // घररज विहव सयणाइएसु रमिऊण पंच दियहाई। . वच्चंति कहिंपि वि नियय कम्म पलया निलुक्खित्ता // 14 // अहवा जह सुमिणय पावियम्मि रज्जाई इट्ठवत्थुम्मि / खणमेगं हरिसिज्जति पाणीणो पुण विसीयंती // 15 // कइवयदिणलद्धेहिं तहेव रज्जाइएहिं सूसंती। विगएहिं तेहिं वि पुणो जीवा दीणत्तणमुवैति // 16 // रुप्पकणयाई वत्थु जह दीसइ इंदयालविज्जाए। खदिट्ठनहरूवं तह जाणसु विहवमाईयं // 17 // संझन्भरायसुरचाव विब्ममे घडण विहडणसरूवे / विहवाइ वत्थुनिवहे किं मुज्झसि जीव ! जाणंतो 1 // 18 // पासायसालसमलंकियाई जइ नियसि कत्यइ थिराई / गंधव्यपुरवराई तो तुह रिद्धीवि होज थिरा // 19 //