________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे दुविहंपि धम्मरयणं तरइ नरो घेत्तुमविगलं सो उ। जस्सेगवीसगुणरयणर-संपया सुत्थिया अस्थि // 140 // ता सुछ इमं भणियं पुव्वायरिएहिं परहियरएहिं / इगवीसगुणोवेओ जोग्गो सइ. धम्मरयणस्स // 14 // धम्मरयणोचियाणं देसचरित्तीण तह चरित्तीणं / लिंगाई जाइं समए भणियाइं मुणियतत्तेहिं // 142 // तेसि इमो भावत्थो नियमइ विभवाणुसारओ भणिओ / सपराणुग्गहहेउं समासओ संतिसूरीहिं // 143 // जो परिभावइ एयं सम्मं सिद्धंतगम्भजुत्तीहिं / सो मुत्ति-रमग्गलग्गो कुग्गहगत्तेसु न हु पडइ // 144 // इय धम्मरयणपगरणमणुदियहं जे मणमि भावेति / ते गलियकलिल-पंका नेव्वाणसुहाई पावेंति // 145 // // इइ धम्मरयणपगरणं //