________________ धम्मरयणपगरणं (7) ता धन्नो गुरुआणं न मुयइ नाणाइगुणगणनियाणं / सुपसन्नमणो सययं कयन्नुयं मणसि भावितो॥१२९।। गुणवं च इमो सुत्ते जहत्यगुरुसद्दभायणं इट्ठो। गुणसंपयादरिदो जहुत्तफलदायगो न मओ // 130 // मूलगुणसंपउत्तो न दोसलवजोगओ इमो हेओ। महुरोवक्कमओ पुण पवत्तियव्वो जहुत्तम्मि // 131 / / पत्तो सुसीससदो एव कुणतेण पंथगेणावि / गाढप्पमाइणोवि हुं सेलगसूरिस्स सीसेणं // 132 // एवं गुरुबहुमाणो कयन्नुया सयलगच्छगुणवुड्ढी / अणवत्थापरिहारो हुंति गुणा एवमाईया / / 133 // इहरा वुत्तगुणाणं-विवजओ तह य अत्तउक्करिसो / अप्पञ्चओ जणाणं बोहिविघायाइणो दोसा // 134 / / बकुसकुसीला तित्थं दोसलवा तेसु नियमसंभविणो / जइ तेहिं वजणिज्जो अवजणिज्जो तओ नत्थि // 135 / / इय भावियपरमत्था मज्झत्था नियगुरुं न मुंचंति / सव्वगुणसंपओगं अप्पाणंमि वि अपेच्छंता // 136 // एयं अवमन्नतो वुत्तो सुत्तमि पावसमणोत्ति / महमोहबंधगोवि य खिसंतो अपडितप्पंतो // 137 // सविसेसंपि जयंतो तेसिमवन्नं विवज्जए सम्मं / तो दंसपसोहीओ सुद्धं चरणं लहइ साहू // 138 // इय सत्तलक्खणधरो होइ चरित्ती तओ य नियमेण / कल्लाणपरंपरलाभ-जोगओ लहइ सिवसोक्खं // 139 / /