________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे wwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm सकंमि नो पमायइ असक्ककज्जे पवित्तिमकुणंतो / ' सक्कारंभो चरणं विसुद्धमणुपालए एवं // 11 // जो गुरुमवमन्नंतो आरंभइ किर असक्कमवि किंचि। / सिवभूइव्व न एसो सम्मारंभो महामोहा / / 119 // जायइ गुणेसु रागो सुद्धचरित्तस्स नियमओ पवरो। परिहरइ तओ दोसे गुणगणमालिन्नसंजणणे // 120 // गुणलेसंपि पसंसइ गुरुगुणबुद्धीए परगयं एसो। दोसलवेणवि निययं गुणनिवहं निग्गुणं गणइ // 121 / / पालइ संपत्तगुणं गुणड्ढसंगे पमोयमुव्वहइ / . उज्जमइ भावसारं गुरुतरगुणरयणलाभत्थी // 122 // सयणोत्ति व सीसोत्ति व उवगारित्ति व गणिव्वओ वत्ति / पडिबंधस्स न हेऊ नियमा एयस्स गुणहीणो // 123 // करुणावसेण नवरं अणुसासइ तंपि सुद्धमग्गमि / अञ्चताजोग्गं पुण अरत्तदुट्ठो उवेहेइ // 124 / / उत्तमगुणाणुराया कालाइदोसओ अपत्तावि / गुणसंपया परत्थवि न दुल्लहा होइ भव्वाणं // 125 // गुरूपयसेवानिरओ गुरुआणाराहणमि तल्लिच्छो / चरणभरधरणसत्तो होइ जई नमहा नियमा // 126 // सव्वगुणमूलभूओ भणिओ आयारपढमसुत्ते जं / गुरुकुलवासोवस्सं वसेज तो तत्थ चरणत्थी // 127 // एयस्स परिचाया सुपुंछाइवि न सुंदर भणिय / . कम्माइवि परिसुद्धं गुरुआणावत्तिणो बिंति // 128 //