________________ धम्मरयणपगरणं (7) तेसिं विसयविभागं अमुणंतो नाणवरणकम्मुदया। मुज्झइ जीवो तत्तो सपरेसिमसग्गहं जणइ // 10 // तं पुण संविग्गगुरू परहियकरणुज्जयाणुकंपाए / बोहिंति सुत्तविहिणा पन्नवणिज्जं वियाणंता // 108 // सोवि असग्गहचाया सुविसुद्धं दंसणं चरित्तं च / आराहिउं समत्थो होइ सुहं उज्जुभावाओ // 109 // सुगइनिमित्तं चरणं तं पुण छक्कायसंजमो चेव / सो पालिङ न तीरइ विगहाइ-पमायजुत्तेहिं // 110 // पव्वज विज्जंपिव साहिंतो होइ जो पमाइल्लो / तस्स न सिज्झइ एसा करेइ गरुयं च अवयारं // 111 // पडिलेहणाइचेट्ठा-रक्कायविघाइणी पमत्तस्स / भणिया सुयंमि तम्हा अपमाई सुविहिओ होइ // 112 // रक्खइ वएसु खलियं उवउतो होइ समिइगुत्तीसु / वज्जइ अवज्जहेउं पमार्यचरियं सुथिरचित्तो // 113 // कालंमि अणूणहियं किरियंतरविरहिओ जहासुत्तं / आयरइ सव्वकिरियं अपमाई जो इह चरित्ती // 114 // संघयणादणुरूवं आरंभइ सक्कमेवणुट्ठाणं / बहुलाभमप्पच्छेयं सुयसारविसारओ सुजई // 115 // जह तं बहुं पसाहइ निवडइ अस्संजमे दढं न जओ / जणिउज्जमं बहूणं विसेसकिरियं तहाढवइ // 196 // गुरुगच्छन्नइहेउं कयतित्थपभावणं निरासंसो / अज्जमहागिरिचरियं सुमरंतो कुणइ सक्किरियं // 117 //