________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे P अवगयपत्तसरूवो तयणुग्गहहेउभावबुढ्डिकरं। सुत्तभणियं परूवइ वजंतो दूरमुम्मग्गं // 16 // सव्वंपि जओ दाणं दिन्नं पत्तंमि दायगाण हियं / इहरा अणत्थजणगं पहाणदाणं च सुयदाणं // 9 // सुठ्ठयरं च न देयं एयमपत्तंमि नायतत्तेहिं / इय देसणाऽवि सुद्धा इहरा मिच्छत्तगमणाई // 98 // जं च न सुत्ते विहियं न य पडिसिद्धं जणंमि चिररूढं / समइविगप्पियदोसा तंपि न दूसंति गीयत्था // 99 // संविग्गा गीयतमा विहिरसिया पुव्वसूरिणो आसि / तददूसियमायरियं अणइसई को निवारेइ // 100 // अइसाहसमेयं जं उस्सुत्तपरूवणा कडुविवागा। जाणंतेहि वि दिज्जइ निदेसो सुत्तबज्झत्थे // 101 // दीसंति य ढड्ढसिणो णेगे नियमइ पउत्तजुत्तीहिं / विहिपडिसेहपवत्ता चेइयकिञ्चेसु रूढेसु // 102 // तं पुण विसुद्धसद्धा सुयसंवायं विणा न संसति / अवहीरिऊण नवरं सुयाणुरूवं परूविंति // 103 // अइयारमलकलंकं पमायमाईहिं कहवि चरणस्स / जणियपि वियडणाए सोहिंति मुणी विमलसद्धा // 104 // एसा पवरा सद्धा अणुबद्धा होइ भावसाहुस्स। . एईए सब्भावे पन्नवणिज्जो हवइ एसो // 105 // विहिउज्जमवन्नयभय-उस्सग्गववाय-तदुभयगयाई / सुत्ताई बहुविहाइं समए गंभीरभावाई // 106 // ...