________________ 1.5 धम्मरयणपगरणं (7) अवलंबिऊण कजं जं किंपि समायरंति गीयत्था / थेवावराह बहुगुण सव्वेसि तं पमाणं तु // 85 // जं पुण पमायरूवं गुरुलाघवचिंतविरहियं सवहं / सुहसीलसढाइन्नं चरित्तिणो तं न सेवंति // 86 // जह सड्ढेसु ममत्तं राढाए असुद्धउवहिभत्ताई / निद्देजवसहितूली-मसूरिंगाईण परिभोगो॥८॥ इच्चाई असमंजसमणेगहा खुद्दचिट्ठियं लोए / बहुएहि वि आयरियं न पमाणं सुद्धचरणाणं // 88 // गीयत्थपारतंता इय दुविहं मग्गमणुस्सरंतस्स / भावजइत्तं जुत्तं दुप्पसहंतं जओ चरणं // 89 // सद्धा तिव्वभिलासो धम्मे पवरत्तणं इमं तीसे / विहिसेव अतित्ती सुद्धदेसणा खलियपरिसुद्धी // 10 // विहिसारं चिय सेवइ सद्धालू सत्तिमं अणुट्ठाणं / दव्वाइदोसनिहओ वि पक्खवायं वहइ तम्मि // 11 // निरुओ भोजरसन्नू कवि अवत्थं गओ असुहमन्नं / भुंजं न तंमि रज्जइ सुहभोयणलालसो धणियं // 12 // इय सुद्धचरण रसिओ सेवंतो दव्वओ विरुद्धपि / सदागुणण एसो न भावचरणं अइक्कमइ // 93 // तित्तिं न चेव विंदइ सद्धाजोगेण नाणचरणेसु / वेयावञ्चतवाईसु जहविरियं भावओ जयइ // 14 // सुगुरुसमीवे सम्मं सिद्धंतपयाण मुणियतत्तत्थो / तयणुन्नाओ धन्नो मज्झत्थो देसणं कुणइ // 95 //