________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे भावेतो अणवरयं खणभंगुरयं समत्थवत्थूणं / संबद्धोवि धणाइसु वज्जइ पडिबंधसंबंधं // 74 // संसारविरत्तमणो भोगुवभोगा न तित्तिहेउत्ति / नाउं पराणुरोहा पवत्तई कामभोगेसु // 75 / / वेस व्व निरासंसो अजं कल्लं चयामि चिंतंतो। .. परकीयं पिव पालइ गेहावासं सिढिलभावो // 6 // . इय सत्तरसगुणजुत्तो जिणागमे भावसावगो भणिओ। एस उण कुसलजोगा लहइ लहु भावसाहुत्तं // 77 // एयस्स उ लिंगाइं सयला मग्गाणुसारिणी किरिया / सद्धा पवरा धम्मे पन्नवणिजत्तमुजुभावा // 78 / / किरियासु अप्पमाओ आरंभो सक्कणिज्जणुट्ठाणे / गुरुओ गुणाणुराओ गुरुआणाराहणं परमं // 79 // मग्गो आगमनीई अहवा. संविग्गबहुजणाइन्नं / उभयाणुसारिणी जा सामग्गणुसारिणी किरिया // 8 // अन्नह भणियपि सुए किंचि कालाइकारणावेक्खं / आइन्नमन्नह चिय दीसइ संविग्गगीएहिं // 81 // कप्पाणं पाउरणं अग्गोयरचाय झोलियाभिक्खा / ओवगहियकडाहयतुंबयमुहदाणदोराई // 2 // सिक्किगनिक्खिवणाई पज्जोसवणाइतिहिपरावत्तो / भोयणविहिअन्नत्तं एमाई विविहमन्नपि // 83 / / जं सव्वहा न सुत्ते पडिसिद्धं नेय जीववहहेऊ।.. तं सव्वंपि पमाणं चारित्तधणाण भणियं च // 84 // .