________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे धंतमणिदामससिगयणिहिपयपढमक्खराभिहाणेणं / उवएसमालपगरणमिणमो रइअं हिअट्टाए // 537 // जिणवयणकप्परुक्खो, अणेगसुत्तत्थसालविच्छिन्नो। तवनियमकुसुमगुच्छो, सुग्गइफलबंधणो जथइ // 538 // .. जुग्गा सुसाहुवेरग्गिआण परलोगपत्थिआणं च / संविग्गपक्खिआणं, दायव्वा बहुसुआणं च // 539 // इय धम्मदासगणिणा जिणवयणुवएसकज्जमालाए / मालव्व विविहकुसुमा, कहिआ य सुसीसवग्गस्स // 540 // संतिकरी बुढिकरी, कल्लाणकरी सुमंगलकरी य / होइ कहगस्स परिसाए, तह य निव्वाणफलदाई // 541 // इत्थ समप्पइ इणमो, मालाउवएसपंगरणं पगयं / गाहाणं सव्वाणं; पंचसया चेव चालीसा // 542 // जाव य लवणसमुद्दो, जाव य नक्खत्तमंडिओ मेरू / ताव य रइया माला, जयम्मि थिरथावरा होउ // 543 // अक्खरमत्ताहीणं, जं चिय पढियं अयाणमाणेणं / तं खमह मज्झ सव्वं, जिणवयणविणिग्गया वाणी // 544 // // इइ सिरिधम्मदासगणिविरइया उवएसमाला //