________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे mmmmmmmmm सुद्धं सुसाहुधम्मं, कहेइ निदइ य निययमायारं / सुतवस्सियाण पुरओ, होइ य सव्योमरायणीओ // 515 / / वंदइ नय वंदावइ, किइकम्मं कुणइ कारवे नेय / . अत्तट्ठा नवि दिक्खइ, देइ सुसाहूण बोहेउं / / 516 // ओसन्नो अत्तट्ठा, परमप्पाणं च हणइ दिक्खंतो। तं छुहइ दुग्गईए, अहिययरं बुड्डइ सयं च // 517 / / जह सरणमुवगयाणं, जीवाण निकितए सिरे जो उ / एवं आयरिओऽविहु, उस्सुत्तं पन्नवंतो य // 518 // सावज्जजोगपरिवजणा उ सव्वुत्तमो जईधम्मो। बीओ सावगध-मो, तइओ संविग्गपक्खपहो.॥५१९॥ सेसा मिच्छद्दिडी, गिहिलिङ्गकुलिङ्गदव्वलिङ्गेहिं / , जह तिण्णि य मुक्खपहा संसारपहा तहा तिण्णि // 520 // संसारसागरमिणं, परिब्भमंतेहिं. सव्वजीवेहिं / गहियाणि य मुक्काणि य अणंतसो दव्वलिङ्गाई // 521 // अञ्चगुरत्तो जो पुण, न मुयइ बहुसोऽवि पन्नविजंतो। संविग्गपक्खियत्तं, करिज लब्भिहिसि तेण पहं // 522 // कताररोहमदाणओमगेलन्नमाइकजेसु।। सव्वायरेण जयणाई कुणइ जं साहुकरणिजं // 523 // आयरतरसंमाणं, सुदुक्कर माणसंकडे लोए / संविग्गपक्खियत्तं, ओसन्नेणं फुडं काउं // 524 // सारणचइआ जे गच्छनिग्गया पविहरंति पासत्था। जिणवयणबाहिराऽवि य, ते उ पमाणं न कायव्वा // 525 //