________________ उवएसमाला (6) जो जहवायं न कुणड, मिच्छट्ठिी तओ हु को अन्नो ? / बड्ढेइ अ मिच्छत्तं, पररस संकं जणेमाणो // 504 // आणाए च्चिय चरणं, तभंगे जाण किं न भग्गंति ? / आगं च अइकंतो, करसाएसा कुणइ सेसं ? // 505 // संसारो अ अणतो, भट्ठचरित्तस्स लिङ्गजीविरस / पंचमहव्वयतुंगो, पागारो भल्लिओ जेण // 506 // न करेमित्ति भणित्ता, तं चेव निसेवए पुणो पावं / पञ्चक्खमुसावाई, मायानियडीपसंगो य // 507 // लोएऽवि जो ससूगो, अलिअं सहसा न भासए किंचि / अह दिक्खिओऽवि अलियं, भासइ तो किंच दिवखाए ? // 508 // महवयअणुव्वयाई, छंडेउं जो तवं चरइ अन्नं / सो अन्नागी मूढो, नावाबुड्डो मुणेयव्वो // 509 // सुबहुं पासत्थजणं, नाऊणं जो न होइ मज्झत्यो। नय साहेइ सकजं, कागं च करेइ अप्पाणं // 510 // परिचिंतिऊण निउणं, जइ नियमभरो न तीरए वोढुं / .. परचित्तरंजगेणं, न वेसमित्तेण साहारो // 511 // निच्छ्यनयस्स चरणरसुवघाए नाणदंसणवहोऽवि / ववहार स उ चरणे, हयम्मि भयणा उ सेसाणं // 512 // मुज्झइ जई सुचरणो, सुज्झइ सुरसावओऽवि गुणकलिओ / ओसन्नचरणकरणो, सुज्झइ संविग्गपक्खरुई // 513 // संविग्गपक्खियाणं, लक्खणमेयं, समासओ भणियं / ओसन्नचरणकरणाऽवि जेण कम्मं विसोहंति // 514 / /