________________ श्रुत रत्नरत्नाकरे nmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm साहति अ फुडविअडं, 'मासाहस'सउणसरिसया जीवा। न य कम्मभारगरुयत्तणेण तं आयरंति तहा // 471 // वग्घमुहम्मि अहिंगओ, मंसं दंतंतराउ कढ्डे / मा साहसंति जंपइ, करेइ न य तं जहाभणियं // 472 // परिअट्टिऊण गंथत्थवित्थरं निहसिऊण परमत्थं / तं तह करेह जह तं, न होइ सव्वंपि नडपढियं // 473 // पढइ नडो वेरग्गं, निविजिजा य बहुजणो जेण / पढिऊण तं तह सढो, जालेण जलं समोअरइ // 474 // कह कह करेमि कह मा करेमि कह कह कयं बहुकयं मे / जो हिययसंपसारं, करेइ सो अइकरेइ हियं // 45 // सिढिलो अणायरकओ, अवसवसकओ तहा कयावकओ। सययं पमत्तसीलस्स, संजमो केरिसो होज्जा ? // 476 // चंदुव्व कालपक्खे, परिहाइ पए पए पमायपरो। तह उग्घरविघरनिरंगणो य णय इच्छियं लहइ // 477 / / भीओव्विग्ग निलुको, पागडपच्छन्नदोससयकारी / अप्पञ्चयं जगंतो, जणस्स धी जीवियं जियइ / / 478 / / . न तहिं दिवसा पक्खा, मासा वरिसावि संगणिजंति / जे मूलउत्तरगुणा, अक्खलिया ते गणिज्जंति / / 479 / / जो नवि दिणे दिणे संकलेइ के अज्ज अजिया मि गुणा ? / अगुणेसु अ नहु खलिओ, कह सो उ करिज्ज अप्पहिअं ? // 480 // इय गणियं इय तुलियं इय बहुआ दरिसियं नियमियं च / जइ तहवि न पडिबुज्झइ, किं कीरइ ? नूग भवियव्वं // 481 //