________________ उवएसमाला (6) किमगं तु पुणो जेणं, संजमसेढी सिढिलीकया होई। सो तं-चिअ पडिवज्जइ, दुक्खं पच्छा उ उज्जमई // 482 / / जइ सव्वं उवलद्धं, जइ अप्पा भाविओ उवसमेणं / कायं वायं च मणं, उप्पहेणं जह न देई // 483 // हत्थे न पाए निखिवे, कायं चालिज्ज तंपि कजेणं / कुम्मो व्व सए अंगे, अंगोवंगाई गोविज्जा // 484 / / विकहं विणोयभासं अंतरभासं अवक्कभासं च / जं जस्स अणिट्ठिमपुच्छिओ य भासं न भासिज्जा // 48 // अणवट्ठियं मणो जस्स, झायइ बहुयाई अट्टमट्टाई। तं चिंतिअं च न लहइ, संचिणइ अ पावकम्माई // 486 // जह जह सव्वुवलद्धं, जह जह सुचिरं तवो वणे वुच्छं / तह तह कम्मभरगुरू, संजमनिव्वाहिरो जाओ // 48 // विज्जप्पो जह जह ओसहाई पिज्जेइ वायहरणाई / तह तह से अहिययरं, वाएणाऊरिअं पुढें // 48 // दड्ढजउमकज्जकरं, भिन्नं संखं न होइ पुण करणं / लोहं च तंबविद्धं, न एइ परिकम्मणं किंचि // 489 // को दाही उवएसं, चरणालसयाण दुव्विअड्ढाणं 1 / इंदस्स देवलोगो, न कहिजइ जाणमाणस्स // 490 // दो चेव जिणवरेहिं, जाइजरामरणविप्पमुक्केहिं / लोगम्मि पहा भणिया, सुरसमण सुसावगो वाऽवि // 491 // भावश्चणमुग्गविहारया य दव्वच्चणं तु जिणपूआ / * भावञ्चणाउ भट्ठो, हविज्ज दव्वञ्चणुजुत्तो // 492 //