________________ // 888 // // 889 // // 890 // // 891 // // 892 // // 893 // तत् सर्वथा प्रमोदस्य, कारणं भव्यदेहिनाम् / आर्येऽनुसुन्दरो नैव, शोकसन्तापकारणम् पौण्डरीकमुनिः प्राह, प्रणम्यात्रान्तरे गुरून् / भावि वृत्तमिदं नाथैस्तस्य प्रोक्तं महात्मनः चित्तवृत्तौ पुनर्भावि, किमिति प्रतिपाद्यताम् / गुरुराह भवे तत्रामृतसारमहात्मनः / क्षान्तिर्दया च ये कान्ते, मृदुतासत्यते च ये / ऋजुताचौरते ये च, ये ब्रह्मरतिमुक्तते . - विद्यानिरीहते ये च, यच्च लीनं पुरा स्थितम् / सैन्यं चारित्रधर्माद्यं, तत् सर्वं पार्श्वमेष्यति प्रियाश्चान्या धृतिः श्रद्धा, मेधा विविदिषा सुखाः / मैत्रप्रमुदितोपेक्षाविज्ञप्तिकरुणादिकाः ' सुखं तस्य प्रदास्यन्ति, भावराज्यं स लप्स्यते / करिष्यति गुणैः शुभैश्चित्तवृत्ति सुनिर्मलाम् आरूढः क्षपकश्रेणि, ततश्चैष महाबलः / निहत्य घातिलुण्टाकान्, केवलालोकमाप्स्यति अनुगृह्य ततो विश्वं, समुद्घातं विधाय च / योगान्निरुध्य शैलेशी, प्राप्य यास्यति निर्वृतौ तस्यां च भोक्ष्यते पुर्यां, भावराज्यफलं महत् / अनन्तज्ञानसम्यक्त्ववीर्यानन्दविलासभाग् इतश्च तेन दुर्भार्या, त्यक्ता सा भवितव्यता / परिक्षीणे महामोहबले शोकं करिष्यति मोहादीनां कृतः पक्षो, जानत्याऽप्यस्थिरो यया। मया भग्नाशया प्राप्तं, तया यद्गीयतेऽर्भकैः // 894 // // 895 // // 896 // // 897 // // 898 // // 899 // . 20