________________ // 876 // // 877 // // 878 // // 879 // // 880 // // 881 // स्वधर्मदत्वरागेण, प्राग्भवस्नेहतस्तथा / चित्ते सुललिता साध्वी, मनाक् शोकेन पीडिता तस्याः शोकापनोदाय, ततस्ते सूरिवासवाः / शृण्वत्सु सर्वसभ्येषु, वाचमेवं वितेनिरे आर्ये ! न शोचनीयोऽसौ, नृशार्दूलो महाशयः / पूर्वकोट्यायुषा साध्यमद्वैकेनाप्यवाप यः सर्वार्थसिद्धि संप्राप्तो, नरकाभिमुखोऽपि यः / स कथं शोच्यतामेति, धीरो ध्वस्तद्विषबलः जीवन्नपि सतां शोच्यो, नरः संयमदुर्बलः / न पुनः संयमे, धीरो, मृतोऽप्यानन्दभाजनम् सद्धर्मधनयुक्तस्य, मरणेऽपि महोत्सवः / .. बिभेति मृत्योः स पुनर्यो धर्मधनवर्जितः ज्ञानदर्शनचारित्रतपोरूपाऽऽत्मजीवितम् / आराधनाचतुःस्कन्धा, यस्य स्यात् तस्य किं मृतम् प्रक्षालिताघपङ्का ये, मृताः पण्डितमृत्युना / सतां ते हर्षदातारो, न तु शोच्याः कदाचन सिद्धस्वकार्य इत्यार्ये !, न शोच्यस्तेऽनुसुन्दरः / अनुमोद्यः परं धर्मधीरः कल्याणभाजनम् च्युत्वा स्थितिक्षयात् तस्मात्, पुष्करार्धस्य भारते / गान्धारराजपुत्रोऽसावयोध्यायां भविष्यति नाम्ना चामृतसारोऽसौ, पद्मिनीहृदयप्रियः / लास्यत्युद्यौवनो दीक्षां, विपुलाशयसन्निधौ कृत्वा तीव्र तपो हत्वा, ततः कर्मकदम्बकम् / भवप्रपञ्चं संत्यज्य, शिवसद्मनि यास्यति 259 // 882 // // 883 // // 884 // // 885 // // 886 // // 887 //