________________ // 612 // // 613 // // 614 // // 615 // // 616 // // 617 // प्रवर्तिनी कृता दक्षा, गीतार्था गुरुभिस्ततः / अन्यदा विहरन्ती सा, पूज्या रत्नपुरं ययौ राजा मगधसेनोऽभूत्, तत्र देवी सुमङ्गला / इतश्च वत्सुतात्वेन, जाता मदनमञ्जरी कृतं सुललितेत्यस्या, नाम सा प्राप्य यौवनम् / पुरुषद्वेषिणी जाता, नेष्टः कोऽपि तया वरः अभूतां जननीतातौ, तच्चिन्तादग्धमानसौ / श्रुत्वा मान्यां महाभद्रामागतां मुदितौ हृदि गतावादाय तनयां, तां प्रणन्तुमुपाश्रये / धर्मलाभस्तया दत्तः, प्रदत्ता धर्मदेशना तद्वचोऽबुध्यमानाऽपि, तस्यां स्नेहमुपागता / / पूर्वाभ्यासात् सुललिता, स्थिता तन्मुखदत्तग् अथ सा विततस्नेहकल्लोलाक्रान्तमानसा / स्थास्याम्येतां विना नाहमित्यभिग्रहमग्रहीत् प्रतिश्रुतं च कष्टेन, पितृभ्यामपि तद्वचः / स्वीकारितं च न ग्राह्या, प्रव्रज्याऽस्मदपृच्छया अथ साऽनु महाभद्रां, विज़हार तमोभिदम् / कर्मोदयान्न बोधोऽस्या, जायते च स्फुटः परम् महाभद्रा शङ्खपुरे, समायाताऽन्यदा स्थिता / नन्दस्य श्रेष्ठिनो घङ्घशालायां शीलशालिनी इतः शङ्खपुरेऽभून्मे, श्रीगर्भो मातुलो नृपः / देवी कमलिनी तस्य, महाभद्रापितृष्वसा उपचारानपत्यार्थं, साऽनपत्याऽकरोद् बहून् / औषधीमूलपानादींस्तत्कुक्षावागतस्ततः . .. 237 // 618 // // 619 // // 620 // // 621 // // 622 // // 623 //