________________ क्षेमपुर्यां स्थितेनैव, मया धाम्ना जिता मही। ... भुक्ताश्च विपुला भोगा, बिभ्रता चक्रवर्तिताम् // 600 // अशीति पूर्वलक्षाणि, चतुभिरधिकामहम् / भुक्त्वा राज्यसुखं काले, पश्चिमे चारुलोचने ! // 601 // स्वपुर्या निर्गतः स्वीयविजयोर्वीदिदृक्षया / भ्रान्त्वा वसुन्धरां शङ्खनगरेऽस्मिन् समागतः // 602 // इदं चित्तरमोद्यानं, नृपैः कतिपयैर्युतः / पश्चात् कृत्वा बलं शेषं, संप्राप्तो नन्दनोपमम् // 603 // इतश्च यान्यभूवन्मे, गुणधारणजन्मनि / . आद्यधर्मप्रदः कन्दमुनिमित्रं कुलन्धरः // 604 // भार्या च रम्या मदनमञ्जरी हन्त तान्यपि / भ्रमितान्यद्भुतै रूपैर्भवितव्यतया भवे , // 605 // कृताद् बहुलिकासङ्गात्, ततः कन्दमुनिः क्वचित् / सुकच्छविजयेऽत्रैवानीतो हरिपुरे तया // 606 // सुभद्राया भीमरथराज्याः कुक्षौ प्रवेशितः / . जाता पुत्री कृतं तस्या, महाभद्रेति नाम च // 607 // भ्राता समन्तभद्रोऽभूत्, तस्या लात्वा स च व्रतम् / सुखोपमगुरोः पार्श्वे, द्वादशाङ्गधरोऽभवत् // 608 // ज्ञात्वा योग्यं पदे स्वीये, स्थापयामास तं गुरुः / / महाभद्राऽपि संप्राप्ता, यौवनं युवमोहनम् // 609 // करेऽग्रहीत् तां गन्धर्वपुरनाथो दिवाकरः / रविप्रभस्य भूपस्य, पद्मावत्याश्च नन्दनः // 610 // दैवादसौ गतोऽस्तं सा, प्रतिबोध्य च लम्भिता / दीक्षां समन्तभद्रेण, जाता चैकादशाङ्गभृत् . // 611 // 236