________________ // 120 // // 121 // // 122 // // 123 // // 124 // // 125 // संक्रान्तैः काञ्चनस्तम्भैः, स्वच्छस्फाटिककुट्टिमे / दधत् क्षीराब्धिनिर्मग्नमन्थाद्रिव्रजविभ्रमम् मुक्तावचूलैः स्तम्भस्थैविद्रुमद्युतिमिश्रितैः / / हसत् पूर्वाद्रिशृङ्गस्थसन्ध्यारक्तविधुश्रियम् अवचूलस्थवैडूर्यत्विड्व्याप्तसितचामरैः / भवकण्ठप्रभापीनगङ्गापूरश्रियं हरत् सितचामरसौवर्णदण्डविपिङ्गदर्पणैः / स्वधुनीभृद्भवजटास्फुटेन्दुद्युतिचित्रकृत् . . मणिहारैर्महादर्शमण्डलप्रतिबिम्बितैः / / जलस्थविद्रुमलतावितानश्रीप्रपञ्चकम् प्रविश्य भवनेऽस्माभिश्चारु तत्रावलोकितम् / . बिम्बं युगादिनाथस्य दिक्षु प्रेक्षत्प्रभाभरम् प्रणामो विहितः सर्वैः, पश्यतो विमलस्य तत् / उल्ललासान्तरं वीर्य, गलिता कर्मसन्ततिः व्यचिन्तयदथोद्भूतगुणरागः स चेतसि / अहो भगवतो रूपमिदं शान्तं मनोहरम् अयमाकार एवाह, देवस्य गुणगौरवम् / वीतरागो गतद्वेषो, देवोऽस्मादनुमीयते .. इति ध्यानजलेनास्योन्मूलिते मोहपादषे / जातिस्मरणमन्तःस्थं, सन्निधानमिवोदभूद् जातमूझेऽथ पतितः, क्षमापीठे ससंभ्रमः / शीतवायुप्रदानेन, कृतः सुव्यक्तचेतनः रत्नचूडेन पृष्टच, किमेतदिति सादरम् / नत्वा तं प्रोद्भवद्भक्तिः, प्राह रोमाञ्चभूषणः // 126 // // 127 // // 128 // // 129 // // 130 // // 131 //