________________ ततः प्रभृति चैषा मे, स्वामिनी सहिता मया / / युवाभ्यां सह सर्वत्र, विललास रसाद्भुता // 260 // विकलाक्षे च पञ्चाक्षे, भवतोविरहासहा / यदियं तेन भवतोश्चिरं परिचिताऽस्म्यहम् .. // 261 // श्रुत्वैनां लोलतावाचं, चित्तबालकशाकिनीम् / , . जडो दध्यौ कृतार्थोऽहं, संपन्नं मद्विकल्पितम् // 262 // छलितो लोलतावाक्याज्जडोऽथ रसनां सदा / स्वीकृत्य लालयामास, मधुमद्यपलादिभिः // 263 // पेयापेयधिया शून्यो, भक्ष्याभक्ष्याविशेषवित् / शृङ्गपृच्छपरिभ्रष्टो, जातः सोऽथ पशुर्जड: // 264 // यत् स॒णं रसनां तस्य, भवेल्लालयतः क्वचित् / तत् सर्वं रसना प्राह, रसग्रसनराक्षसी // 265 // धर्मार्थकाममोक्षेभ्यो, विमुखो रसनावशः / दुष्कर्मनिरतो लोकैर्गर्हितो बहुशो जड: // 266 // विचक्षणस्तु नं क्षुब्धः, श्रुत्वा तां लोलतागिरम् / विधिसृष्टिध्वनेरथं, कर्मसृष्टि विचारयन् // 267 // दध्यौ मध्यस्थधीश्चैवमस्त्येवेयं ममाङ्गना। यदास्यकोटरे सृष्टा, पोष्या नैवापरीक्ष्य तु // 268 // स्त्रीवाचैव जडस्तत्त्वमज्ञात्वा यः प्रवर्तते / नदीतीरस्थतरुवत् स पतत्येव निश्चितम् // 269 // लोकानुवृत्त्या तत् पाल्या, न तु लाल्येत्यसावथ / . रसनाया ददौ खाद्यरसं किञ्चिदनादृतः // 270 // अनुवर्तयतश्चेत्थं, रसनां शुभवर्त्मना। .. . लोलतां जयतस्तस्य, त्रिवर्गश्रीरुपस्थिता . // 271 // ૧પ૦