________________ इत्युक्त्वा मौनमालम्ब्य, शैलराजवशंवदः / स्थितोऽहं स्तब्धसर्वाङ्गो, हिमाकान्त इवोच्चकैः // 176 // खेचरी नष्टविद्येव, छिना सा नरसुन्दरी / ततः प्राणपरित्यागकृते गन्तुं प्रचक्रमे // 177 // गतस्तदनुमार्गेऽहं, करोति किमसाविति / दुश्चेष्टामदिक्षुर्मे, गतोऽस्तं तरणिस्तदा // 178 // निशि साऽथ गतैकत्र, शून्यावासे स्मरस्य च / चन्द्रो मुखमिवोदीतो, दास्यतो दशमी दशाम् // 179 // छनात्मा द्वारदेशेऽहं, स्थितस्तत्र विलोकितुम् / अपाशयाऽप्यहो तत्र, पाशः सज्जीकृतस्तया // 180 // अत्रान्तरे मया ध्यातं, यदुक्तमनया मम / न तत् पराभवं कर्तुं, प्रणयस्तत्र कारणम् __ // 181 // तन्मया न कृतं सम्यग्, वारयाम्यधुनाऽप्यमूम् / इतो भावादिति च्छेत्तुं, पाशकं प्रयतो यदा . // 182 // सा तदोवाच दिक्पाला, मम प्राणान् प्रतीच्छत / माभूदीदृग् व्यतिकरो, मम जन्मान्तरेऽपि च // 183 // तस्यार्थं शैलराजो मे, विपरीतमिदं जगौ / * पश्य जन्मान्तरेऽप्येषा, त्वत्सम्बन्धं न वाञ्छति // 184 // कूटार्थदुर्विदग्धेन, मया तूष्णी स्थितं ततः / तया प्राणाः परित्यक्ता, बाणा इव धनुष्मता // 185 // इतश्च निर्यती गेहाद्, दृष्ट्वाऽम्बा नरसुन्दरीम् / मां च तत्पृष्ठतो लग्नमागताऽनुपदं शनैः // 186 // दृष्टा तथाविधा तत्र, तया सा नरसुन्दरी / दध्यौ च मत्सुतस्यापि वार्तेयं ववृतेतराम् // 187 // 145