________________ न कार्य मम संधानं, पापयाऽम्ब ! तया सह। ' असाध्यसिद्धिप्रणयी, यत्नोऽत्र तव निष्फलः // 164 // या मन्यते स्वमात्मानं, पण्डितं मां च बालिशम् / . . . सर्वथा नोत्सहे युक्तं, स्नेहं कर्तुं तया सह // 165 // ततः प्रतिगता माता, तस्यै व्यतिकरं जगौ / .. पपात मूर्छिता भूमौ, ततो वज्रहतेव सा 1 // 166 // शीतलैलब्धचैतन्या, तालवृन्तानिलैरथ / भुवं प्लावयितुं लग्ना, मुक्तैर्नयननिझरैः // 167 // सा ववर्षाश्रुवारीणि, वियोगाग्निव्ययेच्छया / विदाञ्चकार बालाऽन्तर्न चैनं वडवानलम् // 168 // मात्राऽथाभिहितं पुत्रि, शोकोऽयं प्रविमुच्यताम् / स्वयं गत्वा प्रसाद्योऽयं, कठोरहदयः ,प्रियः // 169 // आर्दीकर्तुं मनः शक्यं, कामिनां मार्दवाम्बुना / उपायमेकमित्येनं, कृत्वा स्वनियतिस्थिरा // 170 // तथेति सा प्रतिश्रुत्य, मां सान्त्वयितुमागता / अम्बाऽप्यनुपदं लग्ना, तदायतिदिदृक्षया // 171 // प्रणतोदश्रुनेत्राऽथ, मत्पादौ नरसुन्दरी / प्रसीद त्वां विना त्राणं, मम नास्तीति वादिनी // 172 // क्षणं प्रियोक्तिसिक्ता मच्चित्तभूरार्द्रतां ययौ / क्षणं काठिन्यमद्रीन्द्रप्रतापातपशोषिता // 173 // अथ मानं पुरस्कृत्य, मया सा भर्त्सिता भृशम् / आः पापे ! गच्छ गच्छेतो, मायया कृतमेतया // 174 // कुशलाऽपि कलासु त्वं, कर्तुं शक्ताऽसि वञ्चनम् / . परेषामेव न पुनर्मूर्खाणामपि मादृशाम् . // 175 // 144