________________ // 80 // // 81 // // 82 // // 83 // // 84 // // 85 // ततोऽसौ तां गृहीत्वैव, वरविद्यां परीक्षितुम् / सिद्धार्थनगरं प्राप्तः, पित्रा प्रीत्या प्रवेशितः . दत्तं चावासकस्थानं, सज्जीकृत्याथ मण्डपम् / पतिवरावरगुणान्, सभा चके परीक्षितुम् राजान्वितः स्थितस्तातस्तन्मध्ये सपरिच्छदः / समाहूतौ कलाचार्यस्तत्राहं च समागतो इतः पुण्योदयस्याभून्मदुश्चेष्टितचिन्तया / तेजोमान्द्यमिति स्फुर्तिर्गता प्रातर्विधोरिव प्रस्तुतार्थोऽथ तातेन, कलाचार्याय भाषितः / जातो हर्षातिरेको मे, जहासान्तः कलागुरुः अत्रान्तरे समायातो, भूपतिर्नरकेसरी / तदुत्तरं सभामध्ये, प्रविष्टा नरसुन्दरी . लावण्यामृतपूरेण, प्लावयन्ती जगन्मनः / . स्निग्धसिन्दूरभृत्केशजितसन्ध्यारुणाम्बरा . द्योतयन्ती दिशां चक्रं, दीप्तेन वदनेन्दुना / .. कटाक्षैः पूरयन्तीव, न्यस्तशस्त्रस्मरेषुधिम् तरन्ती स्तनकुम्भाभ्यां, शृंगाररसवारिधिम् / उन्मादयन्ती जघनपुलिनेन. स्मरद्विपम् चटुलैर्मन्मथोल्लापैर्हसन्ती कोकिलध्वनिम् / ' अलङ्कारैर्मुनीनामप्याक्षिपत्नी च मानसम् जजृम्भे शैलराजोऽथ, तां दृष्ट्वा मे ततो मया / चिन्तितं परिणेतुं मां, विनैनां क इवार्हति नरकेसरिराज्ञाऽथोऽभिहिता नरसुन्दरी / . प्रश्नयैनं कलामार्गे, यथेच्छं रिपुदारणम् 130 // 86 // // 87 // // 88 // // 89 // // 90 // // 91 //