________________ // 157 // // 158 // // 159 // // 160 // // 161 // // 164 // अकलङ्कमनोवृत्तेः, परस्त्रीसन्निधावपि / सुदर्शनस्य किं ब्रूमः, सुदर्शनसमुन्नतेः ? ऐश्वर्यराजराजोऽफि, रूपमीनध्वजोऽपि च / सीतया रावण इव, त्याज्यो नार्या नरः परः नपुंसकत्वं तिर्यक्त्वं, दौर्भाग्यं च भवे भवे / भवेन्नराणां स्त्रीणां चा-न्यकान्तासक्तचेतसाम् प्राणभूतं चरित्रस्य, परब्रह्मैककारणम् / समाचरन् ब्रह्मचर्य, पूजितैरपि पूज्यते चिरायुषः सुसंस्थाना-दृढसंहनना नराः / तेजस्विनो महावीर्या, भवेयुर्ब्रह्मचर्यतः पश्यन्ति कृष्णकुटिलां, कबरीमेव योषिताम् / तदभिष्वङ्गजन्मानं, न दुष्कर्मपरम्पराम् सीमन्तिनीनां सीमन्तः, पूर्णः सिन्दूररेणुना। . पन्थाः सीमन्तकाख्यस्य, नरकस्येति लक्ष्यताम् भ्रूवल्लरीं वर्णिनीनां, वर्णयन्ति न जानते / मोक्षाध्वनि प्रस्थितानां, पुरोगामुरगीमिमाम् भारान्नयनापाङ्गा-नङ्गनानां निरीक्षते। हतबुद्धिर्न तु निजं, भङ्गुरं हन्त जीवितम् नासावंशं प्रशंसन्ति, स्त्रीणां सरलमुन्नतम् / निजवंशं न पश्यन्ति, भ्रश्यन्तमनुरागिणः स्त्रीणां कपोले संक्रान्त-मात्मानं वीक्ष्य हृष्यति / संसारसरसीपङ्के, मज्जन्तं वेत्ति नो जङः पिबन्ति रतिसर्वस्व-बुद्ध्या बिम्बाधरं स्त्रियाः / न बुध्यन्ते यत्कृतान्तः, पिबत्यायुर्दिवानिशम् // 165 // // 166 // // 167 // // 168 // // 169 // // 170 //