________________ // .2 // भ्वादिगणप्रकाशोः द्वितीयः पल्लवः // क्वचिदादौ धातुः स्यात् क्वचिदर्थो बन्धसङ्गतेरुक्तिः / चः पूर्वसमुच्चयनेऽथादित्वन्तौ न पूर्वगतौ // 24 // अनिट्-परस्मैप्रभृतिः सर्वेषु स्वानुबन्धतः / ज्ञेयो विभागो धात्वन्तवर्णोक्तिः पूर्वमेव हि: // 25 // भू धातुः सत्तायामादन्ताः ष्ठां गतौ निवृत्तायाम् / घ्रां गन्धोपादाने म्नां अभ्यासेऽथ दाम् दाने // 26 // शब्दाग्नियोगयोर्मां पां पाने गाङ्गताविदन्ताः षट् / मिंङ् ईषद्धसने स्यादि गमने श्रिग् तु सेवायाम् // 27 // जिं जिं परिभूतौ क्षि क्षय ईदन्तौ वयोगतौ डीङ्। णीग् प्रापणे ह्युदन्ता दूं टुं शुं लुं मङ् च्युङ् // 28 // ज्युङ् प्लुङ् जुंङ् गमने रुंङ् रोषे च धुं स्थिरत्वगत्योः कुंङ् / उंङ गुंङ् धुंङ् डुङ् शब्दे सं प्रसवैश्वर्ययोहि ऊदन्तौ // 29 // पूङ् पवने मूङ् बन्धेऽथ ऋदन्ताः धुंग् धारणे भंग / भरणे डुइंग् करणे हंग् हृतौ स्मूं तु चिन्तायाम् // 30 // गू ग्रं तु सेचने सं गमने = प्रापणे च हूँ वरणे। ध्वं व्हं कौटिल्यार्थावौस्वं तु शब्दोपतापयुगे // 31 // धुंङ् तु अवध्वंसेऽथो ऋदन्तः प्लवनतरणयोस्तृः स्यात् / एदन्ता मेङ् प्रत्यर्पणेऽथ देंङ् पालने ट्धे पाने . // 32 / / ऐदन्ता दें स्वप्ने | तृप्तौ निस्वने तु के गैं रैं। पाके ओवै . शोषे ख्य तु स्वदने स्यात् // 33 // गात्रविनामे म्लैं ईं न्यङ्गकृतौ संक्षये तु 5 से क्षै। . ग्लैं हर्षक्षयणे ध्यै चिन्तायां शोधने दैव् // 34 // 281