________________ // 4 // श्रीहर्षकुलगणिविरचितः ॥कविकल्पद्रुमः // // 1 // अनुबन्धफलप्रकाशः प्रथमः पल्लवः // अहँ प्रणम्य श्रीसिद्धहेमलक्षणसङ्गताः / साभिधेयाः प्रकाश्यन्ते पद्यबन्धेन धातवः // 1 // आदौ वक्ष्येऽनुबन्धानां सर्वधातुनिवासिनाम् / फलानि, तेष्वकारःस्यात् सुखोच्चाराय जीववत् // 2 // आकार आदित 4-4-71 इतीनिषेधाय क्तयोर्भवेत् / मिन्नवद्वेनिषेधादिहेतुश्चारम्भभावयोः // 3 // प्रमेदितः प्रमिन्नश्च यथा मिन्नं च मेदितम् / अनेनेति नवा 4-4-72 भावारम्भ इत्यत्र कीर्तितः इकार इङितः 3-3-22 कर्त्तर्यात्मनेपदसूचकः / एधतेवदीकारस्तु व्यक्तोभयपदात्मकः ईगितस्सूत्रनिर्दिष्टो 3-3-95 यजते यजतीतिवत् / उति स्वरानन्दतिवन्नोऽन्तं इत्युदितः 4-4-98 स्वरात् // 6 // अङ्क्त्वाऽञ्चित्वावदूः क्त्वायामूदितो 4-4-42 वेति वेटफलः / अचखाददुपान्त्यस्येत्युपान्त्यहस्वनाश 4-2-35 ऋत् // 7 // ऋकारोऽदर्शदद्राक्षीद् ऋदिच्छ्वीत्यङ् विकल्पकृत् 3-4-65 / लृदिद्युतादीत्यङ्सूची 3-4-64 लुत्परस्मैपदेऽगमत् // 8 // न श्व्यादि 4-3-49 सिच्येदिद् वृद्धेरभावायाहसीदिव। इडभावः क्तयोरैदित् डीयश्व्यैदीति 4-4-61 चित्तवत् // 9 // सूयत्येति 4-2-70 क्तयोस्तो न ओदिति स्यात्प्रवाणवत् / धूगोदीत्यशिति 4-4-38 स्तादौ वेट क्षान्ता क्षमितावदौत् // 10 // एकस्वरादिति 4-4-56. स्ताद्यशिति स्यादिडभावकृत् / अनुस्वारः प्रवातावत्स्वरेत इति संस्थिताः // 11 // 279 मा