________________ // 4 // श्रीमद्-विनयकुशलविरचितम् // मण्डलप्रकरणम् // पणमिअ वीरजिणिदं, भवमंडलभमणदुक्खपरिमुक्कं / चंदाइमंडलाई-विआरलवमुद्धरिस्सामि ससिरविणो दो चउरो, बार दुचत्ता बिसत्तरी अ कमा / जंबूलवणोआइसु, पंचसु ठाणेसु नायव्वा // 2 // बत्तीससयं चंदा, बत्तीससयं च सूरिआ सययं / समसेणीए सव्वे, माणुसखित्ते परिभमंति // 3 // चत्तारि अ पंतीओ, चंदाइच्चाण मणुअलोगम्मि / छावट्ठी छावट्ठी, होई इक्किक्किआ पंती छप्पन्नं पंतीओ, नक्खत्ताणं तु मणुअलोगम्मि / छावट्ठी छावट्ठी, होई इक्किक्किया पंती. // 5 // छावत्तरं गहाणं, पंतिसयं होइ मणुअलोगम्मि / छावट्ठि अ छावट्ठि अ, होई इक्किक्किया पंती. // 6 // ते मेरु पडिअडंता, पयाहिणावत्तमंडला सव्वे / अणवट्ठिअजोगेहिं, चंदा सूरा गहगणा य // 7 // दीवे असिइसंयं जो-अणाण तीसहिअ तिनि सय लवणे। . खित्तं पणसयदसहिअ, भागा अडयाल इंगसट्ठा // 8 // इह दीवे दुन्नि रवी, दुन्नि अ चंदा सया पयासंति / चुलसीसयमेगेसि, मंडलमन्नेसि पन्नरस // 9 // दो जोअणंतराई, सूराण ससीण पंचतीसा य / तीसमिगसट्ठिभागा, चउरो तस्सत्त भागा य // 10 // संततमंतरमेअं, रवीण पणसट्ठिमंडला दीवे / तत्थ बिसट्ठी निसढे, तिन्नि अ बाहाइ तस्सेव // 11 // 240