________________ अक्ख ठाणसमाइं, पंतीसु तासु नट्ठरूवाइं / . नेआई सुन्न कोठय, संखा सरिसाई सेसासु // 24 // उद्दिट्टभंग अंकप्पमाणकोढेसु संति जे अंका। ... उद्दिट्टभंगसंखा, मिलिएहिं तेहिं कायव्वा // 25 // इअ अणुपुब्बिप्पमुहे भंगे सम्मं विआणिउं जोउ। . भावेण गुणइनिच्चं सो सिद्धिसुहाई पावेइं ... // 26 // जं छम्मासिय वरसिय, तवेण तिब्वेण भि(ज्झ)ए पावं / नमुक्कार अणणुपुव्वी, गुणणे तयं खणद्धेण // 27 // जो गुणइ अणणुपुब्वि, भंगे सयले विसावहाणमणो / दढरोसवेरिएहिं वद्धो वि समुच्चए सिग्धं // 28 // एएहिं अभिमंतियवासेणं, सिरसि खित्तमित्तेण / साइणिभुअप्पमुहा, नासंति खणेण सव्वगहा // 29 // अलेविअ उवसग्गा, रायाइ भयाई कुट्ठरोगाय नवपय अणाणुपुव्वी, गुणने जंति उवसामं // 30 // तवगच्छमंडणाणं सीसो, सिरिसोमसुंदरगुरूणं / परमपयसंपयत्थी जंपइ नवपयथयं एयं // 31 // पंचनमुक्कारथयं एयं सेयं करंति संजम वि। . जो जाएइ लहइ सो जिणकित्तियमहिमसिद्धिसुहं // 32 // 246