________________ // 1 // // 4 // पू.आ.श्री.जिनकीर्तिसूरिविरचिताः ॥नमस्कारस्तवः // परमेष्ठिनमुक्कारं, थुणामि भत्तीइ तन्नवपयाणं / पत्थार 1, भंगसंखा 2, नट्ट 3, दिट्ठा 4 कहणेणं एगाईण पयाणं, गणअंताणं परुप्परं गुणणे / अणुपुब्विप्पमुहाणं, भंगाणं हुंति संखाउ. . // 2 // एगस्स एगभंगो, दोण्णं दो चेव तिण्ह छभंगा / चउवीसं च चउण्णं, वीसुत्तर संयं च पंचण्हं सत्तसयाणि वीसा, छण्हं पणसहसचत्तसत्तण्णं / ' चालीससहस्सतिसया, वीसुत्तरा हुंति अट्ठण्हं लक्खतिगं बासट्ठी, सहस्स अट्ठयसयाणि तह / असीइ नवकार नवपयाणं, भंगसंखाउ नायव्वा तत्थ पढमाणुपुव्वी, चरमा पच्छाणुपुब्विया नेया / सेसाओ मज्झिमाओ, अणाणुपुव्वीओ सव्वाओ // 6 // अणुपुब्विभंग हिट्ठा जिटुं, ठविय अग्गओ उवरि सरिसं / पुव्विं जिट्ठाइ कमा, सेसे मुत्तुं समयभेयं एगाईण पयाणं, उड्डअहो आयया सुपंतीसु / पच्छारकरणमवरं भणामि परिवट्ट अंकेहि // 8 // अंतंकेण बिभत्तं गणगणियं लद्ध अंकु सेसेहि। भइयव्वो परिवठ्ठो, नेया नवमाइ पंतीसु // 9 // पुव्वगण भंगसंखा, अहवा उत्तरगणम्मि परिवट्टो / ' निय 2 संखा निय 2 गणअंतंकेण भत्तव्वा // 10 // इग 1 इग 2 दु 3 छ 4 चउवीसं 5 वीसुत्तरसयं च 6 / सत्तसयवीसा 7 पणसहसा, चालीसा 8 चत्तसंहस्सातिसयवीसा 911 244 // 7 //