________________ // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // // 12 // स्नानभूषणसाम्राज्य-वाञ्छया कार्तिकः स्मृतः / जगच्छीर्षे शिवपदं, तन्मार्गेच्छापरः परः / पोषोऽतिपोषात् पुत्रादे-माघो वैरिविनाशने / फाल्गुनो मैथुने पात्र-त्यागे विवसनाशया चैत्रो विचित्रव्यापारे, परः शाखासु वर्धनः / ज्येष्ठानुसाराज्ज्येष्ठोपि, शुचौ शौचं शिवस्पृहा मनस्यर्कोदयो द्रष्टुं, भोक्तुं पातुं तथेच्छया / जाड्येन शान्त्या वाक्येन, मृष्टेन च विधूदयः कषाये नोकषाये वा, वाञ्छा मङ्गलवारतः / ज्ञाने ध्याने शास्त्रवार्ता, विधौ वारस्तु बोधनः देवार्चने गुरोः सम्यक्, सेवने पान्थकादिवत् / परोपकारे विद्यादौ, हृदि वाञ्छा गुरूदयः राजन्यायेथ यवना-चाराध्ययनचिन्तने। . स्थापनोत्थापने तीर्थ-यात्रायां भार्गवो हृदि. हिंसायामन्ते क्रूर-कार्ये चौर्यादिकर्मणि / धुतादेरिच्छया मान्ये, ज्ञेयं मन्दमयं मनः अश्विनीच्छावशाद् गत्यां, याम्यं रोगेऽर्थ संग्रहे। व्रते तपसि वाग्नेयं, ब्राय स्यात् पाठशौचयोः मृगाच्चापल्यमाीयां, स्नाने पानेम्बुवर्षणे / पुनर्वसू धनोत्पादे, पुष्यः पोषणकर्मणि साप्यं विषेऽन्यदोषोक्तौ, मघा स्वपितृतर्पणे / भोमादौ पूर्वफाल्गुन्या-मुत्तरात्वग्निदीपने कलाभ्यासबलं हस्ते, विचित्रेच्छा तु चित्रया / स्वातौ वातप्रयत्नाद्यै-श्वर्य काम्यं विशाखया // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // // 18 // 178.