________________ // 1 // // 2 // // 3 // // 4 // महोपाध्यायश्रीमेघविजयज़ीविरचिता ॥अर्हद्गीता // पीठिका सरस्वती सदा भूया-दार्हती शाश्वती श्रिये / पूर्णा प्रभातसञ्जात-प्रभेवेन्दुविवस्वतोः यस्यां नैकान्तजडता नोष्मता न तमोलवः / निर्दोषां सुप्रकाशाङ्गी स्तुमंस्तामार्हती गिरम् मेघगम्भीरघोषत्वा-द्यदीयाऽव्यक्तवर्णता.।' गीतारम्भ इवाऽन्वर्थ- दर्शने स्पष्टवर्णता .. साध्यक्षा श्रुतदेवीवा-ऽनुयोगाङ्गचतुर्भुजा / आत्मानुशासनाद् ब्राह्मी संविदे हंसगामिनी बृहत्त्वाद् ब्रह्म सद्ज्ञानं तद् ब्रह्माऽर्हति केवलम् / परे ब्रह्मणि निर्माय शिवे सिद्धे स्वरूपतः ब्रह्मास्मिन्निति जीवोऽपि ब्रह्मात्मैव तदाश्रयात् / वह्नेराश्रयतोङ्गारो वह्निमण्डलमंशुमान् ब्रह्मणा ज्ञायमानोऽर्थः सर्वो ब्रह्माऽभिधीयते / तत्तद्विषयिणः शुद्धे-विषयेऽध्यवसायतः सुधेयमिति चिन्तायां गोचरः सलिलं सुधा। राजवाग् विषयोऽप्यर्थो राजवागीयमुच्यते वस्तु यत्कर्मविषय-स्तत्कर्मार्चादिकं स्फुटम् / व्यापारविषये भावे व्यापारोऽयमिति स्थितिः ब्रह्मणो विषयादेवं यत्सत्तद् ब्रह्म निश्चितम् / जीवोऽपि ब्रह्म शुद्धस्य तस्य ब्रह्मपदं शिवम् जीवन्मुक्तोऽपि सर्वज्ञः प्रास्तदोषः सुसंवृतः / ब्रह्मचर्यपर: साक्षा-त्परब्रह्मतयोच्यते . // 6 // // 7 // // 8 // // 9 // // 10 // // 11 // 154