________________ एकद्वित्रिचतुःपञ्चदिनषट्कक्रमक्षयात् / एकविंशादिपश्चाहान्यत्र शोध्यानि तद्यथा // 570 // . एकविंशत्यहं त्वर्कनाडीवाहिनि मारुते / चतुःसप्ततिसंयुक्ते मृत्युदिनशते भवेत् / // 571 // द्वाविंशति दिनान्येवं सद्विषष्टावहःशते / षड्दिनोनैः पञ्चमासैस्त्रयोविंशत्यहानुगे : // 572 // तथैव वायौ वहति चतुर्विंशतिवासरीम् / विंशत्यभ्यधिके मृत्युभवेद्दिनशत्ते गते // 573 // पञ्चविंशत्यहं चैवं वायौ मासत्रये मृतिः / मासद्वये पुनर्मृत्युः षड्विंशतिदिनानुगे // 574 // सप्तविंशत्यहं वहे नाशो मासेन जायते / मासार्धेन पुनर्मृत्युरष्टाविंशत्यहानुगे // 575 // एकोनत्रिंशदहगे मृतिः स्याद्दशमेऽहनि / त्रिंशदिनीचरे तु स्यात्पञ्चत्वं पञ्चमे दिने // 576 // एकत्रिंशदहचरे वायौ मृत्युदिनत्रये / / द्वितीयदिवसे नाशो द्वात्रिंशदहवाहिनि // 577 // त्रयस्त्रिंशदहचरे त्वेकाहेनापि पञ्चता / एवं यदीन्दुनाड्यां स्यात्तदा व्याध्यादिकं दिशेत् // 578 // अध्यात्मं वायुमाश्रित्य प्रत्येकं सूर्यसोमयोः / एवमभ्यासयोगेन जानीयात्कालनिर्णयम् // 579 // अध्यात्मिकविपर्यासः संभवेद्व्याधितोऽपि हि / . तन्निश्चयाय बध्नामि बाह्यं कालस्य लक्षणम् // 580 // नेत्रश्रोत्रशिरोभेदात् स च त्रिविधलक्षणः / निरीक्ष्यः सूर्यमाश्रित्य यथेष्टमपरः पुनः / // 581 // " aliरापहवाहान 110