________________ आरभ्य माघमासादेः पश्चाहानि मरुद्वहन् / . संवत्सरत्रयस्यान्ते संसूचयति पञ्चताम् // 546 // सर्वत्र द्वित्रिचतुरो वायुश्चेद्दिवसान् वहेत् / अब्दभागैस्तु ते शोध्या यथावदनुपूर्वशः // 547 // अथेदानी प्रवक्ष्यामि कञ्चित् कालस्य निर्णयम् / . सूर्यमार्ग समाश्रित्य स च. पौष्णेऽवगम्यते .. // 548 // जन्मऋक्षगते चन्द्रे समंसप्तगते रवौ। पौष्णनामा भवेत्कालो मृत्युनिर्णयकारणम् // 549 // दिनार्धं दिनमेकं च यदा सूर्ये मरुद्वहन् / चतुर्दशे द्वादशेऽब्दे मृत्यवे भवति क्रमात् // 550 // तथैव च वहन् वायुरहोरात्रं व्यहं त्र्यहम् / दशमाष्टमषष्ठाब्देष्वन्ताय भवति क्रमात् // 551 // वहन् दिनानि चत्वारि तुर्येऽब्दे मृत्यवे मरुत् / साशीत्यहःसहस्रे तु पञ्चाहानि वहन् पुनः // 552 // एकद्वित्रिचतुःपञ्चचतुर्विशत्यह:क्षयात् / षडादीन् दिवसान् पञ्च शोधयेदिह तद्यथा . // 553 // षट्कं दिनानामध्यर्कं वहमाने समीरणे / जीवत्यहां सहस्रं षट्पञ्चाशदिवसाधिकम् // 554 // सहस्रं साष्टकं जीवेद्वायौ सप्ताहवाहिनि / सषट्त्रिंशन्नवशती जीवेदष्टाहवाहिनि // 555 // एकत्रैव नवाहानि तथा वहति मारुते / अह्नामष्टशती जीवेच्चत्वारिंशद्दिनाधिकाम् // 556 // तथैव वायौ प्रवहत्येकत्र दश वासरान् / विंशत्यभ्यधिकामह्नां जीवेत्सप्तशती ध्रुवम् // 557 // 114