________________ भत्ती पुया वनज्जलणं, वज्जणमवन्नवायस्स / आसायणपरिहारो, दंसणविणओ समासेणं // 931 // मोत्तूण जिणं मोत्तूण जिणमयं जिणमयट्ठिए मोत्तुं / संसारकच्चवारं चिंतिज्जंतं जगं सेसं // 932 // संका कंख विगिच्छा पसंस तह संथवो कुलिंगीसु / सम्मत्तस्सऽइयारा परिहरियव्वा पयत्तेणं // 933 // पावयणी धम्मकही वाई नेमित्तिओ तवस्सी य / विज्जा सिद्धो य कवी अद्वैव पभावगा भणिया // 934 // जिणसासणे कुसलया पभावणाऽऽययणसेवणा थिरया / भत्ती य गुणा सम्मत्तदीवया उत्तमा पंच . // 935 // उवसम संवेगो वि य निव्वेओ तह य होइ अणुकंपा। अस्थिक्कं चिय एए संमत्ते लक्खणा पंच * // 936 // नोअन्नतिथिए अन्नतिथिदेवे य दह सदेवे वि।। गहिए कुतित्थिएहिं वंदामि न वा नमसामि // 937 // नेव अणालत्तो आलवेमि नो संलवेमि तह तेसिं। देमि न असणाईयं पेसेमि न गंधपुप्फाइं // 938 // रायाभिओगो य गणाभिओगो, बलाभिओगो य सुराभिओगो / कंतारवित्ती गुरुनिग्गहो य छ छिडिआओ, जिणसासणम्मि // 939 // मूलं दारं पइट्ठाणं आहारो भायणं निही। . दुच्छक्कस्सावि धम्मस्स सम्मत्तं परिकित्तियं * // 940 / / अत्थि य मिच्चो कुणई कयं च वेएइ अस्थि निव्वाणं / अस्थि य मोक्खावाओ छस्सम्मत्तस्स ठाणाई // 941 // एगविह दुविह तिविहं चउहा पंचविह दसविहं सम्मं / दव्वाइ कारगाई उवसमभेएहि वा सम्म // 942 //