________________ एगविहं सम्मरुई निसग्गऽभिगमेहि तं भवे दुविहं। तिविहं तं खइयाई अहवा वि हुं कारगाईहिं . // 943 / / सम्मत्तमीसमिच्छत्तकम्मक्खयओ भणंति तं खइयं / ... मिच्छत्तखओवसमा खाओवसमं ववइसंति .: // 944 // मिच्छत्तस्स उवसमा उवसमयं तं भणंति समयन्नू / तं उवसमसेढीए आइमसम्मत्तलाभे वा // 945 // विहिआणुट्ठाणं पुण कारगमिह रोयगं तु सद्दहणं। मिच्छद्दिट्टी दीवइ जं तत्ते दीवगं तं तु // 946 // खइयाई सासायणसहियं तं चउविहं तु विनेयं / . . तं सम्मत्तब्भंसे मिच्छत्ताऽऽपत्तिरूवं तु // 947 // वेययसंजुत्तं पुण एयं चिय पंचहा विणिद्दिटुं / सम्मत्तचरिमपोग्गलवेयणकाले तयं होइ // 948 // एयं चिय पंचविहं निस्सग्गाभिगमभेयओ दसहा / अहवा वि निसग्गरुई इच्चाइ जमागमे भणिअं // 949 // निसग्गु वएसरुई आणरुई सुत्त बीय रुईमेव / अहिगम वित्थाररुई किरिया संखेव धम्मरुई // 950 // जो जिणदिढे भावे चउव्विहे सद्दहेइ सयमेव / एमेव नन्नह त्ति य स निसग्गरुइ त्ति नायव्वो // 951 // एए चेव उ भावे उवइढे जो परेण सद्दहइ। छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइ त्ति नायव्वो // 952 // रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होई। आणाए रोयंतो सो खलु आणारुई नाम // 953 // जो सुत्तमहिज्जंतो सुएणमोगाहई उ सम्मत्तं / . अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तरुइ त्ति नायव्वो . // 954 //