________________ जो आणं अवमन्नइ सो तित्थयरं गुरुं च धम्मं च। आणं च अइक्कंतो दीहं परिभमइ संसारे . // 886 // जो जेण सुद्धधम्मम्मि बोहिओ संजएण गिहिणा वा। सो चेव तस्स भन्नइ धम्मगुरू धम्मदाणाओ ... // 887 / पडिबोहिऊण जेणं सम्मत्तं गाहिओ य सो तस्स / आभवइ सव्वकालं जा सम्मत्तं न उ वमेइ // 888 / जो निण्हवेइ मूढो धम्मायरिओ जिणिंदवरवयणं / सो पावमई हिंडइ अणंतकालं च संसारे // .889 / जा जस्स ठिई जा जस्स संतई पुव्वपुरिसकयमेरा / सो तं अइक्कमन्तो अणंतसंसारिओ होइ / // 890 / न हु किं पि अणुन्नायं पडिसिद्धं वा वि जिणवरिंदेहिं / तित्थयराणं आणा कज्जे सच्चेण होयव्वं . // 891 / न हु कि पि अणुन्नायं पडिसिद्धं वा वि जिणवरिंदेहिं / मुत्तुं मेहुणभावं न तं विणा रागदोसेणं // 892 / सुत्तेण चोइओ जो अन्नं उद्दिसिय तं न पडिवज्जे / सो तंतवायबज्झो न होइ धम्मम्मि अहिगारी // 893 / आयरणा वि हु आणा अविरुद्धा चेव होइ आण त्ति / इहरा तित्थयरासायण त्ति तल्लक्खणं चेयं // 894 / असढेहिं समाइन्नं जं कत्थइ केणई असावज्ज। न निवारियमन्नेहिं बहुजणमयमेवमायरियं // 895 // अविहिकया वरमकयं असूइवयणं भणंति समयएणू / अविहिकयम्मि वि थोवं अकयम्मि य गुरुअयं होइ // 896 // अवलंबिऊण कज्जं जं किंचि वि आयरंति गीयत्था। थोवावराहबहुगुण सव्वेसिं तं पमाणं तु / // 897 // 302