________________ // 898 // एयं वियारसारं पइदिण उवओगि अत्थ परिकहणं / संखेवओ महत्थं उद्धारु व्व ए(द्धरियं) ससमयाओ. जो पढइ गुणइ पाढइ वक्खाणइ चिंतए य अणुदियहं / सो बहुवियारकुसलो जायइ अचिरेण जणपुज्जो . गाहग्ग नवसयाई सिलोयमाणेण चउदससयाई / नंदउ जा ससिसूरं पज्जुण्णसूरिवयणेणं // 899 / / // 900 // 303