________________ सेणावई मोहनिवस्स एसो, सुहाण जं विग्घकरो दुरप्पा / महारिऊ सव्वजियाण एसो, कयावि कज्जा न तओ पमाओ॥ 146 // थोवो वि कयपमाओ, जइणौ संसारवड्णो भणिओ। जह सो सुमंगलमुणी, पमायदोसेण पयबद्धो // 147 / / पढममणिच्च 1 मसरणं 2, संसारो 3 एगया य 4 अन्नत्तं 5 / असुइत्तं 6 आसव 7 संवरो य 8 निज्जरा 9 नवमी // 148 // लोगसहावो 10 बोहिय-दुल्लहा 11 धम्मस्स साहगा अरिहा 12 / एयाओ भावणाओ, भावेयव्वा पयत्तेणं // 149 // मासाईसत्तंता 7, पढमा' 8 बिइ 9 तइय 10 सत्तराइदिणा / अहराइ 11 एगराई 12, भिक्खूपडिमाण बारसगं // 150 // शुद्धाचार: साधुः, श्रीजिनवचनानुसारतो नित्यं / कुर्यात्क्रमेण सम्यक्, स्वस्याहोरात्रकृत्यानि // 151 // निच्चमचंचलनयणा, पसंतवयणा पसिद्धगुणरयणा। . जियमयणा मिउवयणा, सव्वत्थ वि सन्निहिअजयणा // 152 // इरियासमिईपभिई-नियसुद्धायारसेवणे निउणा / जे सुयनिहिणो समणा, तेहिं इमा भूसिया पुहवी . // 153 / / जह चिंतामणिरयणं, सुलहं न हु होइ तुच्छविहवाणं / गुणविहववज्जियाणं, जियाण तह धम्मरयणं पि . // 154 // क्षपेकश्रेण्यारूढः, कृत्वा घनघातिकर्मणां नाशं / * आत्मा केवलभूत्या, भवस्थपरमात्मतां भजते // 155 // तदनु भवोपग्राहक-कर्मसमूह समूलमुन्मूल्य / ऋजुगत्या लोकाग्रं, प्राप्तोऽसौ सिद्धपरमात्मा // 156 // नामजिणा जिणनामा, ठवणजिणा जिणंदपडिमाओ। दव्वजिणा जिणजीवा, भावजिणा समवसरणट्ठा // 157 // 11