________________ दसकप्पव्ववहारो, संवच्छरपणगदिक्खियस्सेव / ठाणं समवाओ तिय, अंगे ते अट्ठवासस्स // 134 // दसवासस्स वियाहो, इक्कारसवासियस्स य इमेओ। खुड्डियविमाणमाई, अज्झयणा पंच नायव्वा // 135 // बारसवासस्स तहा, अरुणुववायाइ पंच अज्झयणा / तेरसवासस्स तहा, उट्ठाणसुयाइया चउरो // 136 // चउदसवासस्स तहा, आसीविसभावणं जिणा बिति / पन्नरसवासिगस्स य, दिट्ठीविसभावणं तह य // 137 // सोलसवासाईसु य, एगोत्तरवुड्डिएसु जहसंखं / ... चारणभावण महसुवि(मि)-णभावणा तेयगनिसग्गा // 138 // एगुणवीसगस्स य, दिट्ठीवाओ दुवालसममंगं / संपुण्णवीसवरिसो, मणुवाई सव्वंसुत्तस्स . // 139 // स्वाध्यायं कुर्वद्भिः संयममार्गाविराधकैर्मुनिभिः / व्याविद्धत्वप्रमुखा, अतिचारा:सर्वथा वाः // 140 // लिंगतियं 3 वयणतियं 6, कालतियं 9 तह परोक्ख 10 पच्चक्खं११॥ उवणयवणयचउक्कं 15, अज्झत्थं 16 चेव सोलसमं // 141 // पञ्चाश्रवाद्विरमणं, पञ्चेन्द्रियनिग्रहः कषायजयः। दण्डत्रयविरतिश्चे-ति संयमः सप्तदशभेदः // 142 // नृपसचिवेभ्यनरादी-स्तथैव जल्पयति न खलु काणादीन् / न च संदिग्धे कार्ये, भाषामवधारिणी ब्रूते // 143 // राजेश्वराद्यैश्च कदापि धीमान्, पृष्टो मुनिः कूपतडागकार्ये / अस्तीति नास्तीति वन्न पुण्यं, भवन्ति यद्भूतवधान्तरायाः॥ 144 // भवसयसहस्सदुलहे, जाईजरामरणसागरुत्तारे। . जइधम्मम्मि गुणायर, खणमवि मा काहिसि पमायं // 145 // 210