________________ जलणो वि जलं जलही वि, गोपयं वीसहरा वि रज्जूओ। .. सीलजुआणं मत्ता, करिणो हरिणोवमा हुति // 62 // वित्थरइ जसं वड्डइ, बलं च विलसंति विविहरिद्धीओ। सेवंति सुरा सिमंति, मंतविज्जा य सीलेणं // 63 // कि मंडणेहि कज्जं, जइ सीलेण अलंकिओ देहो। किं मंडणेहिं कज्जं, जइ सीले हुज्ज संदेहो . . // 64 // नारीओ वि अंणेगा, सीलगुणेणं जयम्मि विक्खाया। जासिं चरित्तसवणे, मुणिणो विमणे चमकंति . // 65 // इत्थिं वा पुरिसं वा, निस्संकं नमसु सीलगुणपुटुं। . इत्थिं वा पुरिसं वा, चयसु लहुं सीलपब्भटुं // 66 // पंडुत्तं पंडत्तं, दोहग्गमरूवया य अबलत्तं / दुस्सीलयालयाए, इणमो कुसुमं फलं नरओ __.. // 67 // अरुग्गं सोहग्गं, संघयणं रूवमाउबलमउलं / अन्नं पि कि अदिज्जं, सीलव्वयकप्परुक्खस्स // 68 // चालणिजलेण चंपा, जीए. उग्घाडियं कवाडतिअं। कस्स न हरेइ चित्तं, तीए चरिअं सुभद्दाए // 69 // गेही गिद्धिमणंतं, परिहरिय परिग्गहे नवविहम्मि / पंचमवए पमाणं, करेज्ज इच्छाणुमाणेणं // 70 // सेवंति पहुं लंघंति, सायरं सायरं भमंति भुवं / विवरं विसंति निवसंति, पिउवणे परिग्गहे निरया // 71 // संतोसगुणेण अकिंचणो वि इंदाहियं सुहं लहइ / ' इंदस्स वि रिद्धि, पाविऊण ऊणो च्चिय अतुट्ठो // 72 // विवेकः सद्गुणश्रेणि-हेतुर्निगदितो जिनैः। संतोषादिगुणः कोऽपि, प्राप्यते न हि तं विना // 73 // 204