________________ // 77 // प्रादुर्भावे विवेकस्य, गुणाः सर्वेऽपि शोभनाः / स्वयमेवाश्रयन्ते हि, भव्यात्मानं यथा धनं . // 74 // भुवणक्कमणसमत्थे, लोभसमुद्दे वि सप्पमाणंसि / कुणइ दिसापरिमाणं, सुसावओ सेउबंधं व // 75 // करुणावल्लीबीयं, जइ कुव्वंतो दिसासु परिमाणं / राया असोगचंदो, ता नरए नेव निवडतो // 76 // भोअणकम्मेहिं दुहा, बीयं भोगोवभोगमाणवयं / भोअणओ सावज्जं, उस्सग्गेणं परिहरइ तह अतरंतो वज़्जइ, बहुसावज्जाई एस भुज्जाइं। बावीसं अन्नाइ वि, जहारिहं नायजिणधम्मो // 78 // मंसाईणं नियम, धीमं पाणच्चये वि पालंतो। पावइ परम्मि लोए, सुरभोए वंकचूलो व्व // 79 // कम्माउ जइ कम्म, विणा न तीरेइ निव्वहेउं तो। पनरसकम्मादाणे, चएइ अण्णं पि खरकम्मं . इयरं पि हु सावज्जं, पढमं कम्मं न तं समारभइ / जं दट्टण पयट्टइ, आरंभे अविरओ लोओ // 81 // दंडिज्जइ जेण जिओ, वंज्जिय नियदेहसयणधम्मटुं / सो आरंभो केवल-पावफलोऽणत्थदंड.त्ति // 82 // अवज्झाण पावउवएस-हिंसदाणप्पमायचरिएहि / जं चउहा सो मुच्चइ, गुणव्वयं तं भवे तइअं // 83 // सुद्धे सावयगेहे, हवइ गलणाइ सत्त सविसेसं / जलमिट्ठ 1 खार 2 आछण 3, तक्कं 4 घी 5 तिल्ल ६चुण्णायं / / 84 // प्रायो गृहिभिर्वर्ण्यः, शक्त्यनुसारेण चार्थदण्डोऽपि। कथमधिगतपरमार्था, अनर्थदण्डं प्रयुञ्जन्ते // 85 // 205 // 80 //