________________ // 77 // देसूणपुव्वकोडी गुरु लहुअं च अंतमुहु देसं। छट्ठाइगारसंता लहु समया अंतमुहु गुरुआ / // 76 // अंतमुहत्तं एगं अलहुक्कोसं अजोगिखीणेसु / देसूणपुव्वकोडी गुरु लहु अंतमुहु जोगी मीसे खीणसजोगी न मरंत मरतेगारसगुणेसु। तह मिच्छसासाणअविरइ सहपरभवगा न सेसट्टा // 78 // उवसंतिजिणा थोवा संखिज्जगुणा उ खीणमोहिजिणा। सुहुमनिअट्टिअनिअट्टि तिन्नि वि तुला विसेसहिआ // 79 // जोगि अपमत्त इयरे संखगुणा देस सासणा मिस्सा। अविरयं अजोगि मिच्छा चउर असंखा दुवे गंता // 8 // चउदसगुणसोवाणे इअ दुहरोहे कमेण रुहिऊणं। .. नरसुरमहिंदवंछियसिवपासाए सया वसह .. // 81 // श्रीजिनलाभसूरिसंगृहित ॥आत्मप्रबोधः // अनंतविज्ञानविशुद्धरूपं, निरस्तमोहादिपरस्वरूपं / नरामरेंद्रैः कृतचारुभक्ति, नमामि तीर्थेशमनंतशक्तिम् // 1 // अनादिसंबद्धसमस्तकर्म-मलीमसत्वं निजकं निरस्य / उपात्तशुद्धात्मगुणाय सद्यो, नमोऽस्तु देवार्यमहेश्वराय // 2 // जगत्रयाधीशमुखोद्भवाया, वाग्देवतायाः स्मरणं विधाय / विभाव्यतेऽसौ स्वपरोपकृत्यै, विशुद्धिहेतु शुचिरात्मबोधः // 3 // प्रकाशमाद्यं वरदर्शनस्य, ततश्च देशाद्विरतेर्द्वितीयं / तृतीयमस्मिन् सुमुनिव्रतानां, वक्ष्ये चतुर्थं परमात्मतायाः // 4 // 198