________________ // 413 // // 414 // // 415 // // 416 // // 417 // // 418 // गब्मावहारकल्लाणग रयणीपोसहम्मि सामइअं। तिगुणुच्चारो पोसहसामइएसुं३ कसेल्लजलं४ पज्जुसिअविदलपोलिअगहणं विदलं ति संगरप्पमुहं / इच्चाअहिउस्सुत्तं किरिआविसयं मुणेअव्वं तत्थ वि अहिअं गब्भावहारकल्लाणगं ति वीरस्स / जिणवल्लहेण भणि मिच्छाभिनिवेसवसगेण भणइ भणियं च सुत्ते वि पंचहत्थुत्तरे त्ति वयणेहिं / गब्भावहाररूवं छटुं कल्याणगं वीरे न मुणइ एअं वयणं उसभेणं पंचउत्तरासाढे। अभिईछटे त्ति समं हविज्ज रज्जाभिसेओ वि णणु कप्पे णो भणिओ रज्जभिसेओ अ उसभसामिस्स / संहरणं पुण सव्वत्थ वीरचरिए कहं तुलं? . इअ चे सुणाहि सुंदर ! पंचासयसुत्तमुत्तजुत्तीए / हत्युत्तरजोएणं चउरो तह साइणा चरनो वक्खाणं पुण पज्जोसवणाकप्पस्स चुण्णिवण्णेसु। ... छण्हं वत्थूणं चिअ अण्णत्थ वि तयणुसरणं ति तम्हा जं संहरणं चरिए निअमेण संगईघडणं / / देवाणंदुप्पन्नं वीरं तिसला पसूअ त्ति. नेवं रज्जभिसोए भयणा भणिआ य तेण तक्कहणे। . तेणोभयं पि कल्लाणगववएसेण रहिअंति। रयणीपोसहिआणं सामइअं सुवणऽणंतरं भणिअं। जिणवल्लहेण विहिणा सुत्ते सामईअं न हवे न मुणइ एअं पोसहपज्जवसाणं तहेव उच्चारो / जं पोसहम्मि कप्पइ कप्पइ तं तस्स सामइए 363 // 419 // // 420 // // 421 // // 422 // // 423 // // 424 //