________________ // 142 // // 143 // // 14 // // 145 // // 146 // // 147 // न मुणइ मूढो लोओ धम्म पुच्छंतमेव जो गुज्झं। . दंसेइ तस्स पासे धम्मो ता कहिमहम्मो अ? जं केवली न भुंजइ किं कारणमित्थ केवलं णाणं / अह वेअणिआ भावा? पढमविगप्पो न जुत्तिजुओ पत्तिज्जइ सुअणाणी जो जो जम्हा उ होइ अहिअयरो। सो अप्पं अप्पतरं भुंजइ नियमेण भावेण दीसइ बहु भुंजतो बहुस्सुओ को वि अप्पमण्णाणी। दुण्णि वि बहु अप्पं वा भुंजंता केई दीसंति . बीए आगमबाहा अरिहंताणं पि वेअणिज्जदुगं। . संतुदयं पुण सायाबंधो भणिओ जिणिदेहिं केवलिणो वि अ वेअणितेअसउदया छुहाइआ हुंति / अण्णह भवत्थसिद्धाणमंतरं सव्वहा न हवे जह जलसित्ता रुक्खा सचेअणा जाव आउअं हुंति / अहवा लहंति वुड्ढिं तयभावे नेव उभयं पि - एवं केवलिणो वि अ सरीरिणो भुत्तिविरहिआ देहे / थिरभावं वुड्ढेि वा लहंति नेव त्ति विण्णेअं दुहिजे अणंतजीवे पासंतो केवली कहं भुंजे ? / अण्णं तऽणंतखुत्तो असुईभावं समावणं . तन्नो जुत्तं जेणं अणंतदुहकारणं भवे णाणं / पुब्बिं निअदुहदुहिओ पच्छा जगदुहदुही जुगवं तम्हा मोहविमुत्तो सकडं कम्मं फलं पि तयणुहरं।। पइपाणिं पासंतो तं मुत्तोऽणंतसुह णाणी पज्जाओ वि पमाणं पवट्टमाणो हु न उण इअरोचि / सिंहासणे निसण्णो धम्मकहं कहइ जह अरिहा // 148 // // 149 // // 150 // // 151 // // 152 // // 153 // 300